Sunday, 12 February 2017

Vahabi Dev Bandi Ahle Hadish K Piche Namaz Padhna Mana hai


*अहले सुन्नत व जमाअत की मस्ज़िद के बहार कहीँ कही लिखा मिलता है की इस मस्ज़िद में "वहाबी, देवबंदी, अहले हदिस, को नमाज़ पढ़ना मना है।"*

सबके ज़हन में सवाल आता है
👉क्यों ❓
तो आइये हम बताते हैं क्यों
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" जब अरब शरीफ में तुर्की सुन्नी मुसलमानों की
हुकूमत थी, तब उस समय क़ाबा शरीफ में बहुत माकूल
इंतज़ाम था नमाज़ के लिए। चारों इमामों को
मानने वालों के लिए। चारों मज़हब के इमाम के
चार मुसल्ले लगवाए हुए थे।
मजहबे हम्बली, हनफ़ी,
मालकी, शाफई, और उस वक़्त में सब अपने अपने
ईमाम के पीछे नमाज़ पढ़ते थे , और कोई भी मसला
भी नही होता था।
तुर्किय हुकूमत "अहले सुन्नत व
जमाअत" के अक़ाएद के थे।

मगर 12 वीं सदी हिजऱी
में फित्नाये "वहाबियत" (उर्फ़ शैतानियत) का आगाज़ हुआ। "आले
सऊद और आले शैख़ ये दोनों ने मिलकर, क़त्लेआम और
कोहराम मचा के जबरदस्ती तुर्कियों से खून खराबा
कर के हुकूमत छीनी।
"आले सऊद" जिसकी हुकमत है अरब शरीफ में, ये इतना बड़ा फितनागड़ हुआ की
इसने अरब शरीफ का नाम अपने खानदानी "सऊद" के
नाम से आगाज़ करवाया। जब की  हमारे प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम , और सारे साहबे कराम ने भी नाम
में बदलाव नही किये मगर इन खबीस वहाबियों ने किया।

 "अब आले शैख़" जो की बिन"अब्दुल वहाब नज़दी के औलाद है।
इनलोगों ने मक़्क़ा शरीफ और मदीना शरीफ पर
हमला करने से पहले एक मुआहेदा किया की जब
हमारी हुक़ूमत आ जायेगी तब, आले सऊद बादशाहियत करे और आले शैख़ सारे मज़हबी
मामलात को देखेंगे, मस्ज़िद, ईमामत, ईमाम, मदरसे,
मुफ़्ती, मुहद्दिस, मुज़द्दिद, और दीगर मज़हबी
मामलात को देखेंगे।

ये मुआहेदा होने के बाद 200
लोगों के साथ इन मरदुदो ने मक़्क़ा शरीफ और मदीना शरीफ पर
हमला किया। और मस्जिदे- नबबी के ईमाम को मुसल्ले पर ही तलवार से क़त्ल किया,
मगर
तुर्की हुकूमत ने हथियार डाल दिए ये कह कर की हम
"हरमे रसूल" में क़त्ल नही करेंगे और खुद क़त्ल हो गए
मगर दिफा न किया .क्यों के ये लोग दीनदार और पक्के सुन्नी थे।
और इस तरह से वाहबिया हुकूमत शुरू हुई। इनकी हुकूमत में सबसे पहला जो काम किया
गया वो था, "जन्नतुल बक़ी और जन्नतुल माला" के
तमाम मज़ारों और क़ब्रों को जमींबोस किया (तोड़ दिया)।
जन्नतुल बक़ी के मज़ारों पर बुलडोज़र चलवाया,
फावरों और गेती से अहले बै'अत के कब्रों को उखाड़
फेंका
और उस वक्त जन्नतुल बक़ी में "हज़रते उस्मान रदियल्लाहो अन्हो का बहुत ही शानदार मज़ार था जिसे इनलोगों उखाड़ फेका, हत्ता के सारे
सहाबा-ए-कीराम की कब्रे मुबारक को जमींबोस
किया।

और उस वक़्त के नज़दी "गुम्बदे खीज़रा" को सबसे बड़ा "बूत-खाना" मानते थे और आज भी उनकी औलाद है जिनका भी यही अक़ीदा है।

मगर
उस वक़्त अल्लाह ताआला का खास करम हुआ अपने
महबूब के रौज़ए अक़दस पर की ये जालिम लोग
"गुम्बदे-खिज़रा" को गिराने में कामयाब ना हुए।
और
ये लोग "अहले सुन्नत व जमाअत" को मुश्रिक़ समझते
थे और आज भी? समझते है, हालांकि वो खुद ही क़ाफ़िर और जहन्नमी है.

अब
फैसला आप के हाथ में है, क्या ऐसे क़ातिल और गुस्ताखे रसूल, देबनदी वहाबी-नज़दी काफिरो और इनके मानने वाले को अपनी सुन्नी मस्ज़िदो में नमाज़ पढ़ने देना चाहिए ?
या हम उनके पीछे नमाज़ पढ़े ?
जो हमारे बुजुर्गों के क़ातिल है।  .    
                   
📒 तारीख नजदो हिजाज📝

🌹🌹RAZA E ASHRAF🌹🌹

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