बहारे शरीअत, हिस्सा- 02 (पोस्ट न. 01)
―――――――――――――――――――――तम्हीद
एक वह जमाना था कि हर मुसलमान इतना इल्म रखता जो उसकी ज़रूरियात को काफी हो और अल्लाह के फज्ल से बहुत मुसलमान ऐसे मौजूद थे जो न मालूम होता उन से बा - आसानी दरयाफ्त कर लेते हत्ता कि हज़रते उमर फारूक रदियल्लाहु तआला अन्हु ने हुक्म फ़रमादिया था हमारे बाज़ार में वही खरीद व फरोख्त करें जो इल्मे दीन जानते हों इस हदीसे पाक को तिर्मिज़ी ने अ़ला इब्ने अब्दुर्रहमान इब्ने याकूब से रिवायत किया उन्होंने अपने बाप से और याकूब के बाप ने अपने बाप से । फिर जिस कदर जमानए नुबुव्वत से दूरी होती गई उसी कद्र इल्म की कमी होती रही । अब वह जमाना आगया कि अवाम तो अवाम बहुत वह जो उलमा कहलाते हैं रोजमर्रा के ज़रूरी मसाइल हत्ता कि फराइज़ व वाजिबात से नावाकिफ और जितना जानते हैं उस पर भी अमल करने से दूर कि उन को देख कर अवाम को सीखने और अमल करने का मौका मिलता । इसी किल्लते इल्म व बे परवाही का नतीजा है कि बहुत से ऐसे मसाइल का जिन से वाकिफ नहीं इन्कार कर बैठते हैं हालाँकि न खुद इल्म रखते हैं कि जान सकें न सीखने का शौक कि जानने वाले से दरयाफ़्त करें न उलमा की खिदमत में हाज़िर होते हैं कि उनकी सोहबत से कुछ सीखें । आसान जुबान में अभी तक कोई ऐसी किताब शाए न हुई है कि रोज़मर्रा के ज़रूरी मसाइल की जरूरियात को पूरा कर सके इसी कमी को पूरा करने के लिए फकीर ( सदरूश्शरीआ मौलाना अमजद अली रहमतुल्लाहि तआला अलैह ) ने अल्लाह तआला पर भरोसा कर के इस काम को शुरू किया हालाँकि मैं खूब जानता हूँ कि न मेरा यह मन्सब न मैं इस काम के लाइक न इतनी फुरसत कि पूरा वक़्त दे कर इस काम को अन्जाम दूँ ।
📝तर्जमा : - " और अल्लाह हम को काफी है और क्या ही बेहतर वकील और नहीं है कोई ताकत और नहीं है कोई कुव्वत मगर अल्लाह बलन्द व बरतर की जानिब से "
📕बहारे शरिअत हिस्सा 2, सफा 5
📮जारी रहेगा.....
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